उड़ान
थोड़ा और आगे ,
दर्द की परिसीमा के ,
दांत भींच कर घिसट जा ,
अस्ताचल के परे ।
चमकीली आखों के ,
मदमाते स्पर्श के ,
विरह की आहों के ,
सपनों की झालर के ,
रुंधी साँसों के ,
अबूझ इच्छाओं के ,
अनकही बातों के ,
सूनी रातों के ,
अनजान आंसुओं के ,
कचोटती चुप्पी के ,
अधूरे शब्दों के ,
कुचली संवेदनाओं के ,
एक और पड़ाव परे ,
घिसट चल ,
रास्ता तेरा है ,
शास्वत सत्य की तरह ,
अनंत और अमर ,
चल जहाँ कोई चाह नहीं ,
कोई समर नहीं ,
नहीं कोई जिजीविषा ,
नहीं कोई नाम ,
नहीं कोई अस्तित्व ,
एक पग और डाल ,
पार कर समस्त त्रुटियाँ ,
सारे लोभ और भेद ,
तज दे सारे आवरण ,
उड़ जा ,
विमुक्त संचार कर ,
विलुप्त हो जा ,
घुल जा हवाओं में ,
किरणों में बिखर जा ,
भूल जा स्वयं को ,
और मोक्ष पा जा ..
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