Snapshot/आशुचित्र
उफनता है बह नहीं पाता,
ओर छोर के विहीन,
अपने हृदय को,
निःशब्द निहारता,
अपनी नाव से।
उग्र मंथन, शुभ्र फेन,
मथता, मारता,
अपनेहीको,
उबलता, उगलता,
निगल जाता।
टूटता है बिखर नहीं पाता,
नाचता रहता है,
अपने भग्न पर,
अनवरत ।
बह के घुल जाता है,
अब अपने ही रुधिर में,
खारा सा,
कुछ स्वाद जीव्हा पर ।
श्वास में चक्रवात,
दृष्टि स्थिर,
तड़ित का बीज,
अंकुरित हुआ है ।
लीन तांडव में,
अनभिज्ञ,
सर्वव्यापी, सर्वत्र,
स्वयं को बिसर जाता है ।
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